Sunday, 7 July 2019
आज खुद से ही हम अंजान है
आज फिर सवेरे निकले है हम शौहरत कमाने,
अपनी नीन्द बेच के अपनी औकात खरीदने।
शायद खुद को खो देना खुद को ढूँढने से ज़ादा आसान है,
आज खुद से ही हम अंजान है।।
कामयाबी की दौड़ मेउं हमने खुद को ही हरा दिया है,
जो ना सोचा था खुद को वोह बना दिया है,
जो ना सोचा था खुद को वो बना दिया है।
दिल के कोने में दब चुके अब सारे अरमान है,
आज खुद से ही हम अंजान है।।
समाज की बेडियाँ तोडी है आज,
शब्दों के समंदर में छलाँग लगाई है,
आज फिर एक बार हम्ने अपनी कलम उठाई है।
अब खुद से खुद की पहचान हुई है,
आज लगता है खुद से हम अंजान नहीं है।।
About TCBMM Diaries
TCBMM ( Department of Mass Media, Thakur College of Science and Commerce.) has come up with an online journal, exclusively owned by the students of Mass Media. With an initiative by aspiring writers, we are having a broad vision of expressing our thoughts to masses. As bloggers we are privileged to unleash our potential on social media to another level. Read more, gain edge and share knowledge.
Siddharth Singh
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